सांझ गहरा रही
अंधेरा छा रहा
एक और दिन गुजर रहा
जा रहा धीरे धीरे
जाते जाते ईशारा कर रहा
अभी तो तुम्हारा साम्राज्य
कल फिर सुबह होगी
सूरज की पहली किरण के साथ मैं फिर दस्तक दूंगा
नयी आशा का संचार
नयी चेतना का निर्माण
मैं गतिशील हूँ
चुपचाप बैठ नहीं सकता
बिस्तर में सो नहीं सकता
आलस को दूर करता हूँ
सबमें ताजगी निर्माण करता हूँ
मैं स्वयं जागता हूँ
सबको जगाता हूँ
मैं सुबह हूँ
शाम को भले ही ढल जाऊ
पर आता जरूर हूँ
मेरा काम प्रकाश फैलाना जो है
लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं
तहे दिल से स्वीकार करते हैं
ईश्वर की प्रार्थना से दिन की शुरुआत करते हैं
मंदिर मे घंटी
मस्जिद मे अजान
दिनचर्या से शुरुआत
यही तो मेरा क्रियाकलाप
हंसती हुई आती हूँ
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ
सुनहरी आभा बिखेरते
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Thursday, 3 January 2019
सुबह
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