गाड़ी घण घण घणघणाती जाती रहती थी
हम सब खिलखिलाते रहते थे
न कोई चिंता
न कोई तनाव
बस सब बतियाते रहते
कब स्टेशन आ जाता
पता ही नहीं चलता
अरे उतर उतर चिल्लाने पर उतरते
आज भी वही सफर था
पर वह बात नहीं थी
साथी नहीं थे
अंजाने पर फिर भी अपने
सुख - दुख बांटने वाले
सेवानिवृत्त हो गए
अब तो रेल की घण घण कर्कश लग रही है
अकेले उब हो रही है
कब उतरा जाय
हंसी आ गई
अकेले और साथ
कितना फर्क पड़ता है
साथी हो तो मंजिल आसान हो जाती है
सफर आराम से कट जाता है
फिर वह जिंदगी का सफर हो
या रेलगाड़ी का
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