Friday, 11 January 2019

मेरा परिचय

मैं सोचने लगा
मैं कौन हूँ
जवाब मिला
पुरूष हूँ
किसी का पुत्र
किसी का पति
किसी का पिता
किसी का भाई
किसी का पड़ोसी
किसी का मित्र
किसी का सहकर्मी
किसी का बाँस
रेल बस मे सहयात्री
देश मे नागरिक
जीवनयात्रा मे मुसाफिर
यही मेरी पहचान
महसूस किया कि
इसमें मैं कहाँ हूँ
कहीं भी तो नजर नहीं आता
इन सबके लिए मैं स्वयं को भूला बैठा
मेरी अंतरात्मा कह रही है
तूने तो स्वयं को पहचाना ही नहीं
इनमें ही बंटकर रह गया
स्वयं को ढूंढ
महसूस कर
खोज - तू क्या है?
क्यों आया है इस संसार मे
मानव जन्म मिला है
बार बार नहीं मिलने वाला
जीवन का दर्शन समझ
जीवन को जी भर कर जी
संपूर्ण रूप में
खंड खंड मे नहीं
यही जीवन का सार

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