बचपन मे लुका छिपी खेला जाता
बचपन भोला और मासूमियत से भरा था
कोई दिखावा नहीं
जो है जैसा है वैसा ही दिखता
बड़़े हुए
बड़प्पन ने दस्तक दी
कुछ बताते
कुछ छिपाते
यह एक अलग तरह का लुकाछिपी का खेल था
कुछ सच
कुछ झूठ
कुछ बनावट
कुछ दिखावट
मुखौटा ओढ़े रहे
एक ही नहीं
एक के बाद एक मुखौटा ओढ़ते रहे
बचपन की सच्चाइ - मासूमियत कही गायब
अब तो लगता है
जिंदगी ही लुकाछिपी का खेल रही है
कब खुशियों से भर जाएगी
कब दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा
जब तक हम संभले
हंसती हुई
मुंह चिढ़ाती गायब ।
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Tuesday, 29 January 2019
लुकाछिपी जिंदगी का
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