Monday, 11 February 2019

भूले कैसे

जिस पर बीतती है
वही जानता है
बी पाजीटिव
यह कहना आसान
पर भूलना मुश्किल
कैसे भूल जाय
जब परिस्थिति विपरीत हो
हमेशा एक के बाद मुसीबत
वह आजन्म पीछा न छोडे
धूप के बाद छांव
अंधकार के बाद दिन
यह तो समझ मे आता है
पर अंधकार ही अंधकार हो
हाँ ,जुगनुओं की तरह कभी कभी रोशनी चमक उठती
पर वह तो क्षणिक
उसका क्या??
ग्रहण कभी कभी ठीक
पर हमेशा
तब तो खुशी से भी डर लगता है
न जाने कब इसमें दुख छिपा हो
अब समझ आ रहा है
क्यों महारानी कुंती ने दुख का वरदान मांगा
   वासुदेव से
क्योंकि वह कभी खुश हो ही नहीं पाई
प्रथम पुत्र को गंगा में प्रवाहित किया
वहाँ से जो सिलसिला शुरू हुआ
वह कर्ण की मृत्यु के साथ ही खत्म हुआ
आखिर मे वन को प्रस्थान किया
क्या कुछ नहीं देखा
महाराज पांडु की मृत्यु से लेकर
पांचाली के चिरहरण तक
ईश्वर की बुआ थी वे
पर देवकीनंदन का वश भी नहीं चला
हस्तिनापुर पर कभी अपना अधिकार नहीं जता पाई
बेटे वन मे भटकते रहे
और वह असहाय देखती रही
लाचार और बेबस मां
अपने बेटे से ही बेटे का जीवन मांग लिया
बेटे को पाकर भी बेटा खो दिया
वह दुर्योधन का मित्र जो था
वह देख रही थी
वह कितनी विवश होगी
जब आपस मे बेटे लड़ रहे हो
थी पांच पांडवों की मां
पर रही हमेशा दुखी
तभी तो विजय पश्चात वह वन को प्रस्थान
पांडवों को भी यह रास नहीं आया
वह भी परक्षित को सिंहासन दे हिमालय की शरण मे

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