अब तक बेटी थी
मम्मी पापा की लाड़ली थी
हर वक्त चीख -पुकार
पूरा दिन घर सर पर उठाए रहती
सुबह देर तक सोती
माँ को हर बात पर डाटती
उस पर नाराज होती
खाने मे मीनमेख निकालती
पापा से हर जरूरत मनवा कर ही रहती
धमा चौकड़ी यह तो आदत मे शुमार
छोटे भाई को सताती
काम से जी चुराती
टी वी का रिमोट अपने हाथ मे ही रखती
नखरा करती
अब वही बदल गई है
बेटी बहू बन गई है
अब आवाज धीरे से निकलती है
घर की साज संभाल करती है
सबसे पहले सुबह उठती
जो बचता वह खा लेती
पति से खर्च मांगते हिचकिचाती
हर काम मे तत्पर
देवर ननद सबके नाज नखरे उठाती
काम मे व्यस्तता के चलते टी वी देखने से वंचित
सास की आज्ञा का पालन करती
अब वह बदल गई है
बेटी से बहूं बन गई है
मायके से ससुराल का सफर तय कर लिया है
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