Wednesday, 3 April 2019

अंधेरा स्थायी नहीं

अंधेरा किसे अच्छा लगता है
हर अंधेरे के पीछे उजाला खड़ा रहता है
वह इंतजार करता रहता है
कब यह खत्म हो
कब मेरा आगमन हो
यही तो जीवन के दो किनारे हैं
जब अंधेरा गहरा रहा है
तब भयभीत न हुआ जाय
ऐसा कोई अंधकार नहीं
जिसका सबेरा न हो
यहाँ तो कुछ भी स्थायी नहीं
बदलाव तो निश्चित है
यही प्रकृति का नियम है
यह उसका अपना अंदाज है
जो जीवन जीना सिखाता है
उसका मूल्य सिखाता है
हर क्षण बहुमूल्य है
उससे सीखना है
आगे बढ़ना है
यही जीवन की रीति है

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