Tuesday, 16 April 2019

कन्या से औरत तक का सफर

बच्ची थी मै तब
सबकी लाडली
पूरे घर मे डोलती थी
फ्रांक पहन कर नाचती थी
झबरे बालों को लहराती थी
सब मेरे नखरे उठाते थे
कहते थे कि
हंस - खेल ले
मेहमान है
पराया धन है
समझ नहीं पाती कि
  ऐसा क्यों कहते थे

ब्याह दिया गया
कन्यादान कर दिया गया
अपने घर से किसी और के घर
सारी जिम्मेदारिया मेरे कंधों पर
अचानक बच्ची से औरत बन गई
सबका ध्यान रखना है
बिना अनुमति के कदम नहीं उठाना है
मुंह बंद कर रहना है
सबसे बाद मे खाना है
वहाॅ मेहमान थी
यहाँ गुलाम हूँ

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