Tuesday, 23 April 2019

शहर मे भी फूल खिले हैं

ःवसंत तो आया है
क्या शहर क्या गाँव क्या पहाड़
वसंती छटा हर जगह छाई है
जरा आँख उठाकर देखे तो
अपने शहर मे भी रौनक छाई है
प्रकृति रानी ने यहाँ भी दस्तक दी है
कंक्रीट के जंगल भी गुलजार हुये हैं
सहजन के पेड़ सफेद फूलों से भर आए हैं
नाजुक पतली फलियां भी जवान हो रही है
आम के पेड़ पर बौर और कच्ची कैरी
बच्चे पत्थर मारते दिख जाते हैं
पीपल के पेड़ पर ताजा हरे पत्ते नजर आ रहे
गुलमोहर भी अपनी हंसी बिखेरने को तत्पर
बादाम भी अपनी बड़ी बड़ी हरी पत्तियों के साथ सड़क की शोभा बढ़ा रहा
अशोक भी खड़ा है अपने अंदाज मे
नीम मे भी निबौली आ रही है
प्रकृति तो गांव -जंगल से निकलकर
इस कंक्रीट के जंगल मे भी अपनी छटा बिखेर रही है
धूल और धुएँ के गुबार मे भी लालिमा और हरियाली के साथ खड़ी है
हम नहीं देख पा रहे हैं
बस भाग रहे हैं
अंधाधुंध देखने की फुरसत कहाँ??
मोबाईल भी है हाथ मे
जरा बस या गाड़ी की खिड़की से बाहर का नजारा भी देखे
प्रकृति रानी की सराहना करें
वह तो सबकी है
गांव हो या शहर
फूल गांव मे ही नहीं शहर मे भी खिलते हैं
प्रकृति अपनी कृपा सब पर बरसाती है

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