Wednesday, 24 April 2019

जुआरी

ताश के पत्तों से खेल रहे हैं
पैसे लगा रहे हैं
कभी हार रहे
कभी जीत रहे
गाली गलौज भी कर रहे
यह हर रोज होता है
अड्डा जमाते है
दिन बिताते हैं
काम नहीं बेकार है
जुआ ही साधन है
समय काटने का
काम करने मे मेहनत
मुफ्त मे पैसा नहीं मिलता
यह मजा नहीं मिलता
शायद यह एहसास नहीं
वह अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहेहैं
जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं
जिंदगी जुआ का खेल नहीं है
जिंदगी को बनाना पडता है
इसे ताश के पत्तों से नहीं
मेहनत और लगन से खेलना पडता है
जिसको जिंदगी से खेलना आ गया
वही सबसे बडा बाजीगर
यहाँ पैसा नहीं
इच्छा - ऑकाक्षा से खेलना है
दांव तो लंबा होता है
पर जब लग जाता है
तब वह सबको पीछे छोड़ जाता है
जो जीता वही सिकंदर।

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