Thursday, 30 May 2019

भाग्य

पढती रही लिखती रही
जीवन को नजदीक से देखती रही
पर वह जीवन दूसरों का था
उसे पढना और लिखना आसान है
स्वयं का जीवन समझ ही नहीं पाई
आज तक कोशिश जारी है
वह इतना उलझा हुआ है
कि सुलझाने की कोशिश  फिर उलझ जाता है
जीवन को समझना इतना आसान नहीं है
जो दिखता है वह होता नहीं
तब वह भ्रम है
जीवन को तो पढा ही नहीं जा सकता
वह चक्रव्यूह है
उसमे इंसान फंसा हुआ है
वह जब स्वयं को समझ नहीं पाता
तब दूसरों को कैसे समझेगा
जिंदगी न कहानी है
न उपन्यास है
न कविता है
वह तो भाग्य का लिखा ताना बाना है

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