पढती रही लिखती रही
जीवन को नजदीक से देखती रही
पर वह जीवन दूसरों का था
उसे पढना और लिखना आसान है
स्वयं का जीवन समझ ही नहीं पाई
आज तक कोशिश जारी है
वह इतना उलझा हुआ है
कि सुलझाने की कोशिश फिर उलझ जाता है
जीवन को समझना इतना आसान नहीं है
जो दिखता है वह होता नहीं
तब वह भ्रम है
जीवन को तो पढा ही नहीं जा सकता
वह चक्रव्यूह है
उसमे इंसान फंसा हुआ है
वह जब स्वयं को समझ नहीं पाता
तब दूसरों को कैसे समझेगा
जिंदगी न कहानी है
न उपन्यास है
न कविता है
वह तो भाग्य का लिखा ताना बाना है
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Thursday, 30 May 2019
भाग्य
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