आज बेटी को स्कूल छोड़ने गई
पहला दिन था
वह तो खुश थी
पर मैं नर्वस थी
कैसे पूरा दिन रहेगी
क्या करेंगी
डिब्बा खाएगी या नहीं
मन अविचलित हो रहा था
अचानक ख्याल आया
इतनी उलझन में मैं क्यों
कभी मुझे भी तो किसी ने इस तरह पहुंचाना होगा
मैं भी उनकी लाडली रही होऊगी
पर उन्होंने मुझे कभी घर रहने नहीं दिया
छोटी मोटी बीमारी में भी
आज लगता है
सही थे
परेशानी तो लगी रहती है
पर काम तो रूकता नहीं
आज पाठशाला की दहलीज पर कदम रख रही है
कल न जाने क्या घटित होगा
मैं कहाँ तक साथ रहूंगी
अपने हिस्से की लडाई तो अकेले ही लडनी पड़ेगी
मन शांत हो गया
माँ हूँ न
सोचना स्वाभाविक था
पर साथ में यह भी याद रखना चाहिए
हम माँ है
जीवन नहीं
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