Wednesday, 26 June 2019

जुडाव का आनंद

रास्ते से गुजर रही थी
गुलमोहर के फूल और पत्तियां
सब जगह बिखरी पडी थी
लोग कुचल कर जा रहे थे
आज गुलमोहर कराह रहा था
यह वही फूल हैं
जो तप्त गर्मी
और धूप में भी मुस्करा रहे थे
आकाश में लालिमा भर रहे थे
कोमल पंखुड़ियां
सब खिलती और लहलहाती थी
इतराती थी
अंगारे जैसी दहकती थी
आभामंडल में अपना आभास कराती थी
आज जमीन पर पडी सिसक रही है
तितर बितर हो गई है
जडो से टूट गई है
अपनी डाली से अलग हो गई है
अलग होने का दर्द झेल रही है
आज महसूस कर रही है
पेड और डाली के मायने क्या हैं
जुडाव का आनंद ही अलग है

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