माँ की कोख
कुम्हार का आवा
दोनों एक समान
कुम्हार कच्ची मिट्टी से गढ
बर्तन आवा में पकने के लिए डालता
कुछ पके सुंदर लाल सूर्ख
कुछ अधपके
कुछ टेढे मेढे
कुछ टूटे
डाला तो था सभी को
पर सब एक जैसे नहीं
माँ भी बच्चों को जन्म देती है
नव महीने पेट में रखती है
पर सब एक समान नहीं
कोई गोरा कोई सांवला
कोई बुद्धिमान कोई साधारण
इसके लिए माँ जिम्मेदार नहीं
यह उसके हाथ में नहीं
कुदरत का खेल है
ऊपरवाले की रचना है
हर रचना अपनी विशिष्टता के साथ है
हर का अपना स्थान
अपना सम्मान
अपना अंदाज
कोई कम या ज्यादा नहीं
No comments:
Post a Comment