मेरी मंजिल क्या है
कैसे पहुंचाना है
कब तक पहुंचेगे
आज तक पता नहीं चला
चलती रहती हूँ
दौड़ती रहती हूँ
पर वह और दूर चली जाती है
बरसों से प्रयत्नशील
जैसे ही लगता है कि
अभी मिलने वाली है
वह दूर छिटक जाती है
अपना दायरा बढा देती है
लगता है कि
यह तो मंजिल नहीं
कुछ और है
वह क्या है
अब तक समझ नहीं पाई
भटक रही हूँ
जिंदगी भी भटका रही है
ठहरती नहीं है
मंजिल का ठिकाना नहीं
ऐसा न हो कि
मंजिल पर पहुंचते पहुंचते
बीच रास्ते में ही रह जाय
मंजिल अधूरी रह जाय
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