Thursday, 13 June 2019

मेरी मंजिल

मेरी मंजिल क्या है
कैसे पहुंचाना है
कब तक पहुंचेगे
आज तक पता नहीं चला
चलती रहती हूँ
दौड़ती रहती हूँ
पर वह और दूर चली जाती है

बरसों से प्रयत्नशील
जैसे ही लगता है कि
अभी मिलने वाली है
वह दूर छिटक जाती है
अपना दायरा बढा देती है
लगता है कि
यह तो मंजिल नहीं
कुछ और है

वह क्या है
अब तक समझ नहीं पाई
भटक रही हूँ
जिंदगी भी भटका रही है
ठहरती नहीं है
मंजिल का ठिकाना नहीं
ऐसा न हो कि
मंजिल पर पहुंचते पहुंचते
बीच रास्ते में ही रह जाय
मंजिल अधूरी रह जाय

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