मौसम आते हैं जाते हैं
रंग बदलते हैं
अपनी छाप छोड़ जाते हैं
हर मौसम कुछ कहता है
कभी कोयल की कूक में
कभी चिडियो की चहचाहट में
कभी आमों की बौरो में
कभी खिलते हुए फूलों में
कभी पत्तों की सरसराहट में
कभी पतझड़
तो कभी वसंत में
कभी समुंदर की विशाल लहरों में
कभी झरने की झर झर में
कभी नदी की तरंगों में
कभी तूफान कभी आंधी में
कभी सूखे कभी बरसात में
कभी झिलमिलाते तारों में
घटते बढते चंद्रमा में
कभी तपती गर्मी में
कभी ठिठुरती ठंडी में
कभी झमझम बरसात में
कभी पूर्णिमा तो कभी अमावस्या मे
कभी सुबह तो कभी संध्या में
बदलाव तो प्रकृति का नियम है
समय एक सा नहीं रहता
उसको तो बदलना ही है
यही संदेश तो मौसम हमको देता है
जीने के गुर सिखा जाता है
उससे अच्छा गुरु
आखिर कहाँ ???
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Thursday, 13 June 2019
उससे अच्छा गुरु आखिर कहाँ??
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