Saturday, 13 July 2019

एक पिता की व्यथा

मैं नेता हूँ पर तुम्हारा पिता भी हूँ
जनता का नुमाइंदा हूँ
साथ साथ संतान के प्रति जिम्मेदार भी हूँ
तुम बडी हो गई
अपने निर्णय लेने का अधिकार
जिंदगी तुम्हारी सही
अपने ढंग से जीओ
पर मुझ पर तोहमत मत लगाओ
मुझे टेलीविजन पर न घसीटो
चैनल दर चैनल तुम इंटरव्यू दे रही
घर की इज्जत को सरेआम उछाल रही
उस पर से गुहार लगा रही
किसने डराया
किसने धमकाया
इस सवाल का जवाब नहीं
अगर ऐसा होता
तब आज तुम इस तरह न बोलती
पढाया ,लिखाया ,बडा किया
पालन पोषण कर योग्य बनाया
शायद इसी का सिला है
अगर ऐसा होता तो
हुआ नहीं
बेटी थी मेरी
जिद कर सकती थी
समझा सकती थी
समय देती
पर बिना कुछ कहे
घर से निकल गई
हर बाप की इच्छा होती है
अपनी संतान के लिए
उसके भविष्य को लेकर
वही मेरी भी होगी
सपने होगे ब्याह को लेकर
वह सब तो धरे के धरे रह गए
अब तो सबके प्रश्न भरी नजरों का सामना
बहुत से अनुत्तरित सवाल
जिसका उत्तर इस समय तो नहीं
भविष्य का पता नहीं
पर इस समय हमें ,हमारे हाल पर छोड़ दो
तुम जहाँ रहो खुश रहो
जिसके भी साथ रहो अच्छी रहो
इससे ज्यादा न कुछ कहना न सुनना

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