Wednesday, 3 July 2019

स्मृति का दंश

स्मृतियो के दंश में जकडी जिंदगी
मुक्त हो ही नहीं पाती
कब होगी
जब विस्तृति आ घेरेगी
शरीर जर्जर हो जाएगा तब
जब विस्मृत होने लगता है
अचानक फिर कुछ ऐसा हो जाता है
सारी यादें ताजा हो जाती है
जैसे पानी की बूंदे
सूखे पौधे पर पड जाती है
वह फिर लहलहा उठता है
हरा भरा हो जाता है
वही हाल स्मृतियों का है
समय समय पर दंश देती रहती है
हम जकडे रहते हैं
यह हमे छोड़ता ही नहीं

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