Wednesday, 10 July 2019

घर का दरवाजा

पहले घर के दरवाजे खुले रहते थे
आज बंद रहते हैं
किसी को ताक झांक की इजाजत नहीं
बेवक्त किसी का भी अंदर नहीं आना

तब बात भी अलग थी
दरवाजे खुले रहते थे
दिल भी खुला रहता था
विचारों का आदान-प्रदान होता था
दुख सुख बांटे जाते थे
आज संवेदना मर गई है
व्यक्ति आत्मकेन्द्रित हो गया है

वह डरता है
उसकी बात को पता नहीं किस रूप में ले
अपनापन समाप्त हो गया है
सहानुभूति के नाम पर मजाक
वह किसी को पसन्द नहीं
इससे तो अकेले ही भले
हम भले हमारा काम भला
हमारे घर का दरवाजा सार्वजनिक नहीं
जो किसी के लिए भी खुल जाय

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