Wednesday, 24 July 2019

हम जिंदगी का साथ निभाते गए

जिंदगी धूप छाँव का खेल खेलती रही
हम भी उसके साथ खेलते रहे
कभी हंसते हंसते
कभी रोते रोते
कभी कभी उदास होकर
कभी-कभी मुस्कराकर
कभी अंजान बनकर
कभी टालकर
कभी अपनाकर
कभी दुराव रखकर
कभी गले लगाकर
कभी दुखी होकर
कभी खुश होकर
कभी खिलखिलाकर
कभी आनंदित होकर
कभी अंधेरे में बैठकर
कभी प्रकाश की किरणों में
कभी बरखा की फुहारो में भीगकर
कभी नम ऑखों और मुस्कुराते होठों से
हमने जिंदगी के साथ भरपूर खेला
कभी साथ नहीं छोड़ा
हर मोड पर उसके साथ खेलते रहे
वह धूप छाँव का खेल खेलती रही
हम साथ निभाते गए .

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