Monday, 15 July 2019

अनोखा कुंआ

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*⭕ अनोखा कुंआ ⭕*
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🔷 गरुड़ पुराण के अनुसार चार स्थानों पर मनुष्य को अच्छे विचार आते हैं --
       1. गर्भ में
       2. बीमारी में
       3. श्मशान में और
       4. भागवत कथा श्रवण में

🔷 यदि ये विचार सदा के लिए स्थिर और दृढ़ हो जाएं तो मनुष्य भवबाधा बन्धन से मुक्त हो जाए और ये चारों स्थान ही मोक्ष का मार्ग खोलते हैं ।

🔷 एक प्रसिद्ध कथा आती है कि एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि 'ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता ?'

🔷 इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया । आखिर में राजा भोज ने अपने राज पंडित से कहा कि 'सात दिनों के अन्दर इस प्रश्न का उत्तर लेकर आओ, वर्ना तुम्हें इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा ।'

🔷 एक-एक करके छह दिन बीत चुके थे । राज पंडित को जबाव नहीं मिला, निराश होकर वह जंगल की तरफ गया । वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई । गड़रिए ने कहा - 'आप तो राज पंडित हैं । राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों है ?'

🔷 यह गड़रिया मेरा क्या मार्ग दर्शन करेगा ? ऐसा सोचकर राज पंडित ने कुछ नहीं कहा । इस पर गडरिए ने दोबारा से उदासी का कारण पूछते हुए कहा - 'पंडित जी ! हम भी सत्संगी हैं, हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो । इसलिए नि:संकोच कहिए ।'

🔷 राज पंडित ने कहा - 'क्या बताएं ? भाई ! राजा ने एक प्रश्न पूछा है और यह भी कहा कि यदि कल तक प्रश्न का जवाब नहीं दिया तो नगर छोड़कर कहीं दूर निकल जाना पड़ेगा ।'

🔷 गड़रिये ने कहा - 'लेकिन प्रश्न क्या है ? यह तो बताओ ।'

🔷 राज पंडित ने राजा का प्रश्न दोहराया - 'ऐसा कौन सा कुंआ है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता ?'

🔷 गड़रिया बोला - 'पंडित जी ! मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ । एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे । बस, पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा ।'

🔷 राज पंडित के अन्दर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी का गड़रिया मैं इसका चेला बनूंगा ? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतू चेला बनने के लिए तैयार हो गया ।

🔷 गड़रिया बोला - 'पहले भेड़ का दूध पीओ, फिर चेले बनो ।'

🔷 राज पंडित ने कहा कि 'यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीएगा तो उसकी बुद्धि मारी जाएगी । मैं दूध नहीं पीऊंगा ।'

🔷 गड़रिये ने कहा - 'तो जाओ, मैं भी पारस नहीं दूंगा ।'

🔷 राज पंडित बोला - 'ठीक है, मैं दूध पीने को तैयार हूँ, लेकिन मुझे आगे क्या करना है ?'

🔷 गड़रिया बोला - 'अब तो पहले मैं दूध को झूठा करुंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा ।'

🔷 राज पंडित ने कहा - 'तू तो हद करता है ! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा ?'

🔷 गडरिया बोला - 'तो जाओ, कहीं और जाओ ।'

🔷 राज पंडित कहा - 'ठीक है, मैं तैयार हूँ झूठा दूध पीने के लिए ।'

🔷 गड़रिया बोला - 'वह बात गयी । अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा, उसको झूठा करुंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा, तब तुम्हें पारस मिलेगा । नहीं तो अपना रास्ता नापिए ।'

🔷 राज पंडित ने खूब विचार कर कहा - 'है तो बड़ा कठिन, लेकिन मैं तैयार हूँ ।'

🔷 गड़रिया बोला - 'मिल गया जवाब । यही तो वह कुआं है - लोभ का, तृष्णा का । जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता । जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रुपी कुएं में गिरते चले गए ।'

🔷 राज पंडित को जवाब मिल गया था । उसने गुरु रुप गड़रिये को किया प्रणाम और राजा को आकर प्रश्न का उत्तर दिया । राजा उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और राज पंडित को ईनाम में बहुत सारी स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं l
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