Tuesday, 13 August 2019

जख्म जल्दी भरता नहीं

जख्म जो लगे
अभी भी भरे नहीं
कुछ कुछ समय पश्चात
फिर हरे भरे
यह नियति या भाग्य
हम तो भागे जा रहे
पकडने की कोशिश कर रहे
यह छूटा जा रहा
हाथ में आ ही नहीं रहा
कैसे आएगा
जख्म तो जड पर लगे हैं
नासूर बन टहनियों तक पहुंच गया है
उन पर भी प्रभाव
उनका भी पीछा नहीं छोड रही
उन्हें भी पल्लवित पुष्पित होने में रूकावट
जख्म बहुत गहरे हैं
फैलता ही जा रहा
जड भी नहीं काट सकते
तब तो सब खत्म
किसी का किया
किसी को भुगतना
यह भी प्रकृति का नियम

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