Thursday, 29 August 2019

संबंधों मे जकडा मानव

कभी-कभी हम सही को भी गलत
गलत को भी सही मान लेते हैं
किसी को खुश करने के लिए
किसी का दिल रखने के लिए
कभी-कभी हम न चाहते हुए भी
किसी के सामने झुक जाते हैं
कभी कभी हम जवाब देना चाहते हैं
पर देते नहीं
उसे बुरा लग जाएंगा
कभी-कभी हम नाराज होना चाहते हैं
पर होते नहीं
कभी-कभी हम गुस्सा होना चाहते हैं
पर होते नहीं
पी जाते हैं
जीवन में न जाने कितनी बार विष का घूंट पीते हैं
जीवन को अमृत बनाने के लिए
समझौता करना पडता है
अपनों को खुश रखने के लिए
मन को मारना पडता है
संबंधों को जीवित रखने के लिए
ताउम्र हम कोशिश में रहते हैं
निभाते रहते हैं
कभी हंस कर
कभी रो कर
कभी जहर का घूंट पी कर
इसमें उलझे रहते हैं
शायद जीवन ही यही है
संबंधों को संभालना तो होगा ही
हम केवल एक व्यक्ति नहीं
एक परिवार
एक समाज
एक प्रांत
एक देश
एक विश्व है
विश्वास ,प्रेम ,त्याग ,समझौता ,समर्पण
दया ,ममता ही तो इसके आधार
आधार है तभी तो जीवन भी सार्थक है
अन्यथा मानव और मानवता
इन्हें कहाँ जगह मिलेगी

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