Saturday, 24 August 2019

प्रेम सबसे परे

तुम तो राधा को छोड़ कर गये थे
फिर कभी मुडकर नहीं देखा
इसके बाद भी आप दोनों एक दूसरे के दिल में थे
आप राधेश्याम ही रहे
इतना प्यार जहाँ हो
वह युग और ही था
आज प्रेम की परिभाषा बदल गयी है
प्रेम स्वार्थी हो गया है
प्रेम त्याग नहीं चाहता है
वह बदला चाहता है
कुछ भी कर गुजरने को तैयार है पाने के लिए
और परिणाम भयंकर
यह किसी भी सभ्य समाज के लिए उचित नहीं
गोपी ,राधा का प्रेम
कन्हैया के लिए
दुर्लभ है आज
प्रेम तो प्रेम होता है
प्रेम ही जीवन का सार
प्रेम बिना जीवन सूना
प्रेम सबसे परे

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