Sunday, 25 August 2019

दर्द जो सहा है

दर्द जो सहा है मैंने
तुमको तो उसकी भनक नहीं
तुम तो उलझे रहे अपने में
अपने सिवा किसी की खबर नहीं
अपनी सोच
अपना आराम
अपना ख्यालात लादते रहे
मैं सहती रही
घुटती रही
जद्दोजहद करती रही
समझौता करती रही
तुम मनमानी करते रहे
भावनाओं को ठेस पहुंचाते रहे
मैं ऊफ भी न कर सकी
मुस्कराती रही
लोगों को दिखाती रही
अंदर से मन जारजार रोता रहा
तुमको लगता रहा
यही प्यार है
घुटती रही पर बोल न पाई
क्योंकि तुमने तो बोलने का अधिकार भी न दिया
पिंजरे में बंद पक्षी फडफडाता रहा
देखने वालों को लगा
कितना सुकून और आराम है
पर दिखावा कब तक
कभी तो विद्रोह
प्यार जबरन नहीं
मन से होता है
जब मन को ही मार डाला
तब प्यार कैसा

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