Wednesday, 11 September 2019

काला कागा

आ जा कागा आ जा
थोड़ा सुस्ता ले
दिन भर कांव कांव करते थक गया होगा
इस खिड़की से उस खिड़की
रोटी का इंतजाम करते करते
कुछ मेहरबान भी
कभी-कभी कुछ स्वादिष्ट भी डाल देते
पर उसमे भी स्वार्थ
खिलाने पर परोपकार और पुण्य
इसी लालच में
अपने जन्म को सार्थक करने के लिए
तू काला है न
कर्कश आवाज है न
तभी ऐसी भावना
संसार रंग रूप देखता है न
इंसान की फितरत है यह
उपयोगिता से ज्यादा रंग रूप
वह तो तुझमे नहीं है न
भले ही तू गंदगी साफ करता हो
पितरो का प्रतिनिधित्व करता हो
मेहमान के आने का संदेश देता हो
पर है तो काला ही न

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