आज ऑख भर आई
समझ नहीं आता
इसमे इतना पानी कहाँ से आता है
वक्त - बेवक्त कभी भी
न चाहते हुए भी
काबू ही नहीं इस पर
कभी-कभी रोकने की कोशिश
कभी-कभी बहाने की कोशिश
अजब दास्ताँ है इसकी
जब आए इस दुनिया में
इसकी विरासत तो साथ ही आई
अंत तक साथ
बखूबी साथ निभाती है
खुशी में भी गम में भी
विरह में भी मिलन में भी
सफलता में भी असफलता में भी
जन्म और मृत्यु में भी
यह साधारण नहीं हैं
बिना कहे भी बोलते हैं
भावनाओं को व्यक्त करने की शक्ति
यह बहुत बडा हथियार है
जहाँ शब्द काम नहीं करते
वे मूक हो जाते हैं
वहाँ आॅसू काम करते हैं
हर बात पर भर आना इसका स्वभाव
रोके नहीं दबाए नहीं
बहने दे निकलने दे
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Tuesday, 10 September 2019
ऑख भर आई
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