दिल की सुनूँ या दिमाग की
दिल कह रहा है मुझसे
बहुत नाराज हूँ तुझसे
तूने सबका तो ख्याल किया
मुझे हमेशा नजरअंदाज किया
कभी इसका दिल रखा
कभी उसका दिल रखा
कभी किसी को खुश तो कभी किसी को
इस चक्कर में स्वयं को भूला दिया
सारी जिंदगी यही करते रहे
समझौता और दूसरों की परवाह
मेरी पीडा को तो समझा ही नहीं
मैं घुटता रहा
दबता रहा
लाचार बना रहा
मायूस होता रहा
पर मेरी सुध नहीं ली
मुझे मारकर अपने कर्तव्य पर कुर्बान होते रहे
बहुत व्यथित हूँ मैं
जो मेरा अपना है
जिसका मैं हूँ
उसी से उपेक्षा
कभी मेरी भी सुनी होती
कभी मेरा भी ख्याल रखा होता
तब शायद आज का मंजर कुछ और होता
जिंदगी अपने लिए भी जी होती
पर ऐसा हुआ नहीं
आज सब स्वयं में व्यस्त
बस मैं ही तुम्हारे साथ
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Monday, 2 September 2019
दिल कुछ कह रहा है
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