Saturday, 21 September 2019

बह जाने दो ऐसी बातों को

बाते हैं कि पीछा ही नहीं छोड़ती
संचित रहती है पूंजी - संपत्ति की तरह
पता नहीं कितने बरसों की बातें मन में समाई
पूंजी खत्म होते जाती है
बातो रूपी पूंजी इकठ्ठा होती जाती है जेहन में
यह हमें सालती रहती है
दुखी करती रहती है
बदले की भावना को प्रेरित करती है
खुशियाँ कम दुख ज्यादा देती है
दुनिया का दस्तूर है
कुछ नहीं तो बातों से हराओ
जम कर व्यंग्य के तीर चलाओ
सामने वाले को नीचे गिराओ
मजा लो और बातें बनाओ
किसी की बदनामी करो
उसका मजाक उडाओ
उसे निकृष्ट साबित करो
यह हथियार है ऐसा
जिसका तोड़ भी मिलना मुश्किल
बातो से ही बातों को काटा जा सकता है
पर यह कला तो सबके पास नहीं
बोल बचन ,बयान बहादुर बहुतेरे
जग की रीति निराली
हलचल मचाना
तमाशा देखना
सहानुभूति के मरहम लगाना
कुछ दिखना और कुछ असलियत
खतरनाक है यह
किसी का सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट कर देता है
सम्मान ,प्रतिष्ठा
यहाँ तक कि जीवन भी
यह पूंजी संचित नहीं करना है
इसे बहा देना है
जीवन ही बहता पानी है
बह जाने दो ऐसी बातों को
नहीं तो सड जाएगा यह जीवन

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