Friday, 20 September 2019

वेदना का मर्म

वेदना सहना आदत में शुमार
वेदना में मुस्कुराना
वेदना में बतियाना
वेदना का काम है भेदना
अंतरतम तक छाया
फिर भी न कोई पहचान पाया
रम गया है जीवन में
वेदना विदा ही नहीं होती
जकड़ कर रखा  है
बडा मजबूत जोड इसका
न चाहते हुए भी जीवन भर साथ निभाने का वादा
हर श्वास के साथ यह विद्यमान
फिर भी बनती अंजान
हर क्षण पर भारी
अभिनय कला में माहिर
अंदर रोती
बाहर हंसती
हर दम जीवन पर छायी रहती
हंसती गाती जीवन के साथ चलती जाती
कब किस रूप में आए
विचलित कर जाए
इसका मर्म कोई समझ न पाए

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