यौवन तो कब का बिदा हो गया
फिर भी यह मुहांसे यदा कदा निकल ही आते हैं
तकलीफ देते हैं
फोड कर कील निकाल देती हूँ
सूख जाते हैं
फिर कहीं दूसरी जगह निकल आते हैं
पीछा ही नहीं छोड़ते
जैसे ही जानने समझने लायक हुई
तब से यह अनचाहे ही आ जुड़े
कभी-कभी कोफ्त होती है
दुख का रिश्ता भी इसी समय जुडा
बचपन बिदा हुआ कि सच का सामना हुआ
गाहे बगाहे होता रहा
एक खत्म हुआ नहीं कि दूसरा तैयार
अब तो उम्र के इस पड़ाव पर लगा
कुछ सुकून मिलेगा
पर वह शायद भाग्य में बदा नहीं
मुहासो की तरह वह भी दस्तक देता रहता है
लगता है आजीवन साथ रहने की कसम खाई हो
हटा दिया तब भी निशान छोड़ ही जाते हैं
जब देखा आईने में
जब देखा अतीत में
पीडा बनकर सालते रहते हैं
मिटाना संभव नहीं है
उपाय कितना भी कर लो
यह तो हमारे हाथ में नहीं
नियति के हाथ है
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Sunday, 20 October 2019
पीडा से नाता
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