वह दीया बेच रही थी
गोद में एक बच्चा
बगल में एक बच्चा
बच्चों का चेहरा सूखा
वह पसीने पोछती रास्ते पर बैठी
आशा है आज घर में दिया जलेगा
खाने को तेल नहीं
दिया कैसे पूरा समय जलाए
आज पैसे आएंगे
खाना भी बनेगा
झोपड़ी में उजाला भी रहेगा
दिए बस बिके
तब उसकी भी दीवाली
रोज रोज तो दीवाली आती नहीं
कुछ पकवान भी बनाएगी
इन गरीबों को यह साल में एक बार बोनस है
मिट्टी के दिए है जरूर
पर उसके लिए तो सोना है
यह लाल काली मिट्टी
पीले सोने और सफेद चांदी से ज्यादा चमकदार
इसके बदौलत ही उसके बच्चों के चेहरे पर मुस्कान
बिना जले दिया भी देता है
तेल बाती मिलने पर और रोशन होता है
घर बाहर ,अमीर गरीब सबको रोशन करता है
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Thursday, 24 October 2019
वह दीया बेचती औरत
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