अनपेक्षित कुछ भी हो
मन को नहीं भाता
वह चाहे मेहमान हो
फिर चाहे बरसात हो
दोनों का बेसब्री से इंतजार
दोनों का दिल से स्वागत भी
पर असमय समय में आए
तब भारी लगता है
बडबडाहट शुरू हो जाती है
खीझ आने लगती है
खुशी तो दूर की बात
अहमियत कम होने लगती है
यह कहाँ से असमय टपक पडे
यह कहाँ से बेमौसम बरसात आ गई
सारा मजा किरकिरा
तब ध्यान रखना है
कब जाना
कितने समय तक रहना
कितने लोगों के साथ जाना
मेहमान ऐसा बने
कि सामने वाला मन से स्वागत सत्कार करें
तूफान की तरह नहीं
कि आप के जाने के बाद भी कोसा जाय
ऐसा कि फिर आपके आने की बाट जोही जाय
खाली हाथ नहीं जाना है
ऐसा कि उसे भी भार न महसूस हो
आप भी खुश हो
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Saturday, 26 October 2019
मेहमान कैसा हो
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