महाभारत में तो एक ही धृतराष्ट्र थे
जो शकुनि के साथ हस्तिनापुर को ही ले डूबे
पुत्रमोह में अंधे और शकुनि जैसा साला
वही उनका सिपहसालार
जिसने कि भीष्म के वंश को ही खत्म करने के उद्देश्य से
गांधार छोड़ हस्तिनापुर में डेरा जमा रखा था
ईष्या और द्वेष का परिणाम
स्वार्थ और सत्ता का मोह
यह सब कारण थे महाभारत का
आज भी तस्वीर वही है
बस युग बदला है
नेता अपनी संतान को सत्ता पर काबिज कराने के लिए प्रयास रत है
साम दाम दंड भेद सबका उपयोग
भले संतान योग्य हो या नहीं
मोह की पट्टी सबने बांध रखी है
कहने को तो यह प्रजातंत्र
पर वह नजर नहीं आता
राजतंत्र है देखा जाय तो
कोई सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं
यह लोग न राम है न भरत है
बस सत्ता लोलुप है
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