कभी छाँव कभी धूप
प्रकृति का खेल चलता निरंतर
हमारा तो कुछ वश नहीं
सब स्वीकार
जीवन का खेल भी तो चलता
परिणाम पर वश तो नहीं हमारा
कभी हंसते कभी रोते
यह जीवन नैया चलती जाती
किनारे की तलाश
किनारा तो कभी मिलता नहीं
एक पूरा हुआ नहीं कि
दूसरा सामने आ खडा हो जाता
जद्दोजहद चलती रहती है
अंतिम सांस तक
समझ नहीं आता
क्या और कैसे
इतना जीवन बीत गया
तब भी लगता है
अभी भी कुछ तो बाकी है
कुछ और समय मिल जाता
काल दरवाजे पर दस्तक दे चुका होता है
प्रस्थान करना है
यह बात तब समझ आती है
जब समय बीत चुका होता है
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Friday, 1 November 2019
प्रस्थान करना है
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