Tuesday, 5 November 2019

यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं

कोई परिचित से कल मुलाकात हुई
पडोस में ही रहते हैं
हालचाल पूछ लिया करते हैं
कभी कभी कुछ ऐसी बात भी
जो दिल को लग जाएं
पर कुछ बोल नहीं पाते
इस भय से रिश्ता न खराब हो जाय
कल फिर मिले
फिर वही पूछा
बोला कुछ नहीं
हंस कर टाल दिया
पर मन रात भर बेचैन रहा
सोचा अब अगली बार मिले
तब ऐसा जवाब दूंगा
कि आइंदा वह फिर पूछने की हिम्मत न करें
सुबह वाॅक को निकले रोज की तरह
देखा बहुत लोगों को खडे
पूछने पर पता चला
कल रात दिल का दौरा पडने से निधन
मन को धक्का लगा
उदास हो गया
सोचने लगा
जीवन का क्या ठिकाना
हम न जाने कितनी बातों में उलझे रहते हैं
उनकी भी जो बरसों पहले इस दुनिया से रुखसत हो गए
हमारा स्वयं का भी ठिकाना नहीं
आज है कल नहीं
दुनिया में रहना है
तब कुछ न कुछ सुनना भी तो है
यह वह दुनिया है
जहाँ अमरूद खरीदते समय मीठा देखा जाता है
फिर उस पर नमक मिर्च लगाकर खाया जाता है
स्वाद का आनंद लेने के लिए
यह उसका जीने का तरीका है
जबकि यह भी सत्य है
यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं
जीवन ही नहीं
तब तो कुछ भी नहीं

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