Tuesday, 5 November 2019

एक हाथ लो दूसरे हाथ दो

लाख तपिश हो
सूरज की कितनी भी गर्मी हो
कुछ पानी भाप बन कर उड गये
फिर भी समंदर सूखा नहीं
अभी भी नमकीन है
अभी भी लहरों में उछाल है
अभी भी नदियों को समा लेने को आतुर
अभी भी जीवंत
अभी भी मनोरम
अभी भी विशाल
अभी भी अथाह
अभी भी गहरा
अभी भी शांत
अभी भी बहुमूल्य
अभी भी शरणगाह
अभी भी मर्यादित
क्योंकि यह समंदर है
उथला तालाब नहीं
आज भर गया तो बह गया
कल धूप से सूख गया
वीरान हो गया
जो देगा वही पाएगा
जो देना ही नहीं जानता हो
वह पाएंगा कैसे
कौन उसके पास आएगा
यह तो लेन देन है
एक हाथ लेना दूसरे हाथ देना

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