Saturday, 30 November 2019

बेटी का बाप

मैं एक बेटी का बाप हूँ
मैं चाहता हूँ
मेरी बेटी पढे लिखे
ऊंचाई को छुए
अपने साथ मेरा भी नाम रोशन करें
दिन रात मेहनत करता हूँ
उसे किसी चीज की कमी न हो
उसकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करता हूँ
उसको जरा सी चोट भी लग जाय
वह नहीं सह सकता हूँ
उसके भविष्य को लेकर शंकित भी चिंतित भी
मैं उस समाज का हिस्सा हूँ
जहाँ नारी जाति की कद्र नहीं
उन्हें स्वतंत्रता नहीं
उन पर हर बंदिश
उठने-बैठने से लेकर पहनने - ओढने तक
हर समय उन्हें संदेह की नजरों से
बात भी किससे करना किससे नहीं
कभी भी कोई भी ऊंगली उठा दे
हर कदम सोचना
यह करना है
यह नहीं करना है
लोग क्या कहेंगे
लोग क्या सोचेंगे
यही सोच सोच कर परेशान
कब लोगों की सोच बदलेंगी
सीता और द्रौपदी से लेकर आज की आधुनिक नारी तक
कुछ भी बोल दो
कभी भी बोल दो
जीना मुश्किल कर दो
बेटियों के पैर में बेडियाँ डाल दो
पुरुष वादी मानसिकता
हम ही श्रेष्ठ हैं
भले नाकारा हो
किसी लायक न हो
पर तब भी हम मर्द है
हमें मर्दानगी दिखाने का हक है
ऐसे भेड़िए छद्मवेश में
डर कर रहना है
दब कर रहना है
सर झुका कर रहना है
क्योंकि बेटी का बाप है

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