Saturday, 14 December 2019

मैं तो वही हूँ

आज मन में कुछ अजीब सी हलचल है
पैर जमीन पर नहीं पडते
लडखडा रहे हैं
मन घबरा रहा है
आवाज अस्फुट है
शब्द सूझ नहीं रहे
ऊंगलियां कांप रही है
बाहर निकलने में डर
किसी के साथ की दरकार
यह हो क्या रहा है
समझ नहीं आ रहा
मैं तो वही हूँ
फिर ऐसा क्यों ??
मैं तो ऐसी नहीं थी
निर्भिक अकेले विचरण करने वाली
शब्दों का तो भंडार भरा रहता था
और आवाज की तो बात ही न करें
वाणी अनवरत चलती रहती थी
ऊंगलियां तो कागज को भर डालती थी
कलम रूकने का नाम नहीं लेती थी
मीलों चलती थी
बस - टेक्सी ज्यादा रास नहीं आती थी
क्या क्या नहीं किया अकेले
अपने दम पर
तब आज ऐसी क्या बात हो गई
होठों पर मुस्कान आ गई
मैं तो वही हूँ
पर वक्त वह नहीं है
वह बदल गया
अब छह ,सोलह ,छब्बीस ,छत्तीस ,छियालिस की नहीं रही
अब साठ की उम्र हो चली है
वह तो बढती ही जा रही है
पर मुझे कहीं पीछे छोड़ जा रही
मैं तो वही हूँ
पर वक्त वह नहीं है
वह मुझे छोड़ आगे बढ रहा
तब तो उसके तालकदम पर डग भरना है
सब कुछ स्वीकार करना है
यह उम्र का तकाजा है

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