ईश्वर से प्यार तो सब कोई करता है
पर उसके घर जाना कोई नहीं चाहता
जाने का नाम सुन ही घबरा जाता है
न स्वयं जाना चाहता है
न किसी प्रियजन का जाना देखना चाहता है
अपने घर हर कोई जाना चाहता है
वही सुकून मिलता है
काम से छूटते ही सीधे कदम घर की ओर
घर बिना मन नहीं लगता
ईश्वर को हम बुलाते हैं
हर तीज त्यौहार पर
उसके नाम पर जश्न और उत्सव मनाते हैं
घर मे खुशियाँ लाते हैं
मन में जीने का उत्साह भरते हैं
उसके यहाँ से कोई आता है
तब हम दिल खोलकर स्वागत करते हैं
नए जीवन के आगमन का शानदार स्वागत
लेकिन जब कोई जाता है
तब हम दुखी और पीड़ित होते हैं
नम ऑखों से बिदा करते हैं
इसी आने और जाने की प्रक्रिया के बीच
जो रहता है
वह है आयुष्य
हमारी उम्र
कितने दिन
कितने समय
यह तो कोई नहीं जानता
बस इतना जानता है
जहाँ से आए थे
एक दिन वहीं जाना है
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