Sunday, 1 December 2019

कविता मर रही है

आज मेरी कविता मर रही है
थक रही है
निशब्द हो रही है
आए दिन वही
कितना लिखेंगी
वह भी सामान्य घटना हो जाएगी
कुछ बच ही नहीं रहा है
हर बार वही
सब लिख चुके
बार बार वही दोहराना
उसका कोई असर भी नहीं
दूसरा कुछ सूझ भी नहीं रहा है
कविता तो सौन्दर्यबोध कराती है
यह तो वीभत्सिता की चरम सीमा
तब शब्द कहाँ से आएगे
कविता को भी मूक बनना पडेगा
तमाशा देखना पडेगा
क्रांति की जननी कविता
यहाँ तो लाचार खडी है
किसी को उसकी नहीं पडी
अब पढने की जरूरत नहीं
अब तो मोबाइल में अश्लील फोटों देखना है
वीभत्स कृत्य को अंजाम देना है
ज्यादा क्या होगा
केस चलेगा
सजा होगी
फांसी हो जाएगी
या फिर वह भी माफ हो जाएगी

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