Thursday, 2 January 2020

ठंडी और मंदी

ठंडी ठंडी
गजब की ठंडी
बना गई
सबको बंदी
सब दुबक रहे
शाल और रजाई में
सडकों पर पसरा सन्नाटा
एक तो कडाके की ठण्डी
ऊपर से मार मंदी की
जेब कैसे करे ढीली
हर चीज में करनी पड रही कमी
कटौती कटौती करते करते
जान पड गई सांसत में
ठंडी और मंदी
दोनों ने कर दिया जीना दुश्वार
अब तो हो गई हद
मन करता है
कब दोनों को भगाए
दोनों ने है अपना
अड्डा जमाया
प्रतीक्षारत में हैं
ऑखे लगी
कब भागे
ठंडी और मंदी

No comments:

Post a Comment