Sunday, 29 March 2020

जरा ठहर जा वो मुसाफिर

अब तो रूक जा
जरा ठहर जा
वो मुसाफिर
यह देश है तेरा
यह जमीन है तेरी
इस पर अधिकार है तेरा
अपना पसीना बहाया है
दिन रात एक किया है
तेरी ही बदौलत है ये सडके
ये आलीशान गगनचुंबी इमारतें
अभी है संकट की बेला
इतना न हो हताश
यह जमी भी तेरी
यह शहर भी तेरा
यह सरकार भी तेरी
जरा सब्र कर
जरा ठहर जा
सब ठहर गए
बस ,ट्रेन और यातायात के साधन
तू कितना चलेगा
तू अकेला नहीं है
सब है फिक्रमंद
बहुत मूल्यवान है तू
अभी तो देश को तुम्हारी जरूरत है
तुम्हारा सहभाग बिना तो कुछ भी नहीं
माना कि मुश्किल घडी है
पर तू भी कहाँ कमजोर है
जहाँ है जैसे है वही रूक जाओ
थोड़ा ठहर जाओ
जरा सुस्ता लो
चलना तो है ताउम्र
गाँव है तुम्हारा
पर यह शहर भी तो नहीं है बेगाना
खून पसीने से सींचा है
आसरा और रोजी-रोटी का है सहारा
तब मत जाओ
अब तो रूक जा
जरा ठहर जा
वो मुसाफिर

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