Monday, 18 May 2020

एक माँ की व्यथा

माॅ है कि वह खुश नहीं रहती
जब देखो उदास
ऑखों में ऑसू
क्या कमी है
समय पर खाना पीना
दवाई और जरूरत का सामान
वैसे ज्यादा किसी चीज की जरूरत नहीं है
फिर ऐसा क्यों ??
माॅ के मन को कैसे समझेगा कोई
उसे प्यार चाहिए
सम्मान चाहिए
अपनापन चाहिए
बतियाना चाहिए
वह तो मिलता नहीं
सब अपना कर्तव्य निभा रहे हैं
मैने भी तो कर्तव्य निभाया है
खुशी खुशी
बडा किया
लिखाया पढाया
आत्मनिर्भर बनाया
पर कभी जताया नहीं
बच्चों की खुशी के आगे स्वयं को तवज्जों नहीं दी
रसोई में लगी रही
सुस्वादु भोजन बनाने में
फरमाइश पूरा करने में
बच्चों को खाते देख स्वयं तृप्त
आज तो मेरे चेहरे की तरफ भी देखने की फुर्सत नहीं
बात करने की तो छोड़ो
समय नहीं है
यह तो बहाना है
अगर चाहे तो समय क्यों नहीं
सब काम समय से
बस मेरे पास दो घडी बैठने का समय नहीं
मैने तो अपनी जिंदगी न्योछावर की है
तुम लोग थोड़ा सा समय नहीं दे सकते

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