माँ बहुत बूढी हो गई है
तब भी मेरी चिंता उन्हें कम नहीं हुई है
मैं ठहरी बचपन से ही आराम पसंद
पागल सनकी सी
न चालाकी न होशियारी
क्या हुआ कैसे हुआ
पर जीवन कट ही गया
आसानी से आराम से
हर परेशानी को हर ली
मेरे भाग्य को लिख दिया
अपनी मेहनत से मुझे संवार दिया
जीवन भर दूसरों के लिए किया
कभी अपने बारे में न सोचा
आज वह थक गई है
तब भी उत्साह कम नहीं हुआ है
बहुत कुछ अभी करना है
पर जीवन की भी एक सीमा है
कितना चलेगा
चलते चलते तो वह भी थक जाता है
ममता की मूर्ति
कर्मठता की जीती जागती मिसाल
है मेरी माँ
माँ बहुत बूढी हो गई है
अब उन्हें आराम चाहिए
सुकून चाहिए
पर वह जीते जी कहाँ नसीब
देखा ध्यान से बहुत दिनों के बाद
अब बहुत कमजोर
न जाने कितने दिन की मेहमान
ऑखों में ऑसू भर आए
जिसने हर पल साथ निभाया
कभी मंझधार में नहीं छोड़ा
वह भी एक दिन चली जाएंगी
चुपके चुपके दबे कदमों से
कोई आएगा उन्हें ले जाएंगा
वह बस यादों में रह जाएंगी
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