आइए अब उस शेर पर नजर डालते हैं, जिसे कैफी आजमी ने गुरु दत्त की बेहद कम उम्र में मौत से आहत होकर शब्दों में पिरोया था। कैफी साहब ने लिखा है-
'रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई
डरता हूं कहीं खुश्क न हो जाए समंदर
राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई
इक बार तो खुद मौत भी घबरा गई होगी
यूं मौत को सीने से लगाता नहीं कोई
माना कि उजालों ने तुम्हें दाग दिए थे
बे-रोत ढले शमा बुझाता नहीं कोई
साकी से गिला था तुम्हें मय-खाने से शिकवा
अब जहर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई
हर सुबह हिला देता था जंजीर जमाना
क्यूं आज दिवाने को जगाता नहीं कोई
अर्थी तो उठा लेते हैं सब अश्क बहा के
नाज-ए-दिल-ए-बेताब उठाता नहीं कोई....'
शबाना की मानें तो उनके पिता ने जो कुछ गुरु दत्त के लिए महसूस किया था, सुशांत की असामयिक मौत भी इन्ही हालातों को बयां कर रहे हैं।
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