हम इतना बेरहम कैसे हो गए
हम इतना खुदगर्ज कैसे हो गए
क्या केवल कहने के लिए
हम मानव और मानवीय
हम इंसान और इंसानियत
देखा जाय तो
हमसे स्वार्थी कोई नहीं
इतिहास भरा है
ऐसे किस्सों से
जहाँ मानवता तार तार हुई
इंसानियत न जाने कितनी बार शर्मसार हुई
हर दिन न जाने कितनी भ्रूण हत्या
हर दिन न जाने कितने बलात्कार
हर दिन न जाने कितने कत्ल
हर दिन न जाने कितनी लूट खसोट
हर दिन न जाने कितने विस्फोट
यह सब तो सामान्य है
हम पढते हैं
हम देखते हैं
हम भूल भी जाते हैं
पशु के पास तो कहने के लिए पशुता
देखा जाय तो असली पाशविकता तो मानव के पास
मानवीयता और इंसानियत तो बस शब्द है
जिसमें वह अपने को श्रेष्ठ बताता है
पशु तो बिना सोचे विचारे काम करता है
मानव पूरे योजनाबद्ध तरीके से
सोची समझी रणनीति के तहत
फिर वह चाहे मजाक हो
फिर वह चाहे किसी की जान लेना हो
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Thursday, 4 June 2020
मानव की मानवीयता
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