Saturday, 27 June 2020

अभाव में भी भाव

अभावों में भी भावों से भरे थे
आज सब भरा है
तब भावों का अभाव है
भावनाएं सिमट गई है
मशीन से हो गए हैं
अब कोई बात का असर नहीं
कौन क्या बोलता है
वह मेरी बला से

जिंदगी हमारी है चाहे जैसे जीए
तब जिंदगी हमारी छोड़ सबकी होती थी
घर में माँ का पीटना
स्कूल में टीचर द्वारा पिटाई
पिता को तो देखते ही सिट्टी पिट्टी गुम
बडे भाई बहन हुए तब तो खैर नहीं
पडोसी और रिश्तेदारो का भी प्रवचन

आज मारना पीटना डांटना अपराध
कोई भी दिल पर कब ले ले
कौन सा कदम उठा ले
तभी तो दिल इतना कमजोर है
कुछ सह नहीं पाते
हमारे तो शरीर पर भी कोडे
दिल पर भी घाव
फिर भी हममें थी सहनशक्ति
आदत हो गई थी इन सबकी
इसलिए अब भी कोई असर नहीं होता
मजबूत बन गए
मार खा खाकर
चोट खा खाकर

क्या उसमें प्रेम नहीं था
माँ मारती थी तो चोट हमसे ज्यादा उसे लगती थी
पिता भविष्य को देखते थे तभी कठोर बने रहते थे
बडा भाई बहन अपनी इच्छा को मार हमारे लिए अनुशासित रहते थे
अडोसी पडोसी और रिश्तेदार भी हमारी कामयाबी से खुश
रिजल्ट हमारा आता था खुश वे होते थे

सब जरूरत पूरी न होती तब भी मलाल न होता
जो मिलता उसी में खुश हो लेते
अंधेरा हो या उजाला
सबमें एक ही समान
बत्ती गुल हो जाती तब भी सब बाहर आ आवाज करते
चिंघाडते
गैलरी में झुंड बना बतियाते
जैसे ही आती
फिर घर में हंसते हुए
दौडते हुए घुसते
सब सामान्य लगता
कुछ तलाशनी नहीं पडती
एंटीना हिलाकर टीवी
बार बार व्यवधान
फिर भी इन्जाय करते
कारण कि तब अभाव तो था
फिर भी भावों से भरे थे

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