Sunday, 28 June 2020

यही तो है मोबाइल का कमाल

माँ कहो न कहानी
मुझे नींद नहीं आती
कहानी सुनते सुनते तू सो जाता
कहीं सपनों में खो जाता
मेरी कहानी अधूरी ही रह जाती
फिर दूसरे दिन वही जिद
यह सिलसिला न जाने कितने बरसों चलता रहा

आज मै भी वही हूँ
तू भी वही है
कहानी भी बहुत है
पर सुनने वाला कोई नहीं
कहानी सुनना क्या बातें करने का भी समय नहीं
तब कहानी अधूरी रह जाती थी
आज बातें अधूरी रह जाती है
आधा सुना कि मोबाइल बजा
तू उसी में रम गया
मेरी बात भी वैसे ही रह गई
तब अंजाने में होता था
अपनेआप नींद आ जाती थी
आज मजबूरी में

मोबाइल ही सब कुछ
जिंदगी का अभिन्न
गुलाम बना दिया उसने
खाना पीना
उठना बैठना
सोना जागना
नहाना धोना
सब उसके साथ
बिस्तर से लेकर बाथरूम तक
नहीं छूटता उसका साथ
कहानी नींद लाती थी
यह नींद उडाता है
फिर भी है यह सबसे खास
सबसे दूरी बना दी
घर में ही रहकर अंजान
यही तो है मोबाइल का कमाल

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