Monday, 29 June 2020

वह पंगत वाली बात कहाँ

शादी थी रिश्तेदारी में
बडे लोग थे
तब बडा ताम झाम भी था
खाने के स्टाल लगे थे
न जाने कितने
सब पर अलग-अलग व्यंजन
समझ नहीं आ रहा था
कहाँ से शुरू करूँ
स्टार्टर से हुई शुरूवात
मजे ले लेकर पानी पुरी और चाट खाई
बस पेट भर गया
अब क्या खाए
सभी व्यंजन आकर्षक
सब अपनी तरफ बुला रहे थे
लालच का तो कोई अंत नहीं
प्लेट लिया
सब दो दो चम्मच डाला
जगह ही नहीं बची थी और लूं
अब बैठने की जगह तलाश
वह सब भरा हुआ
चलो खडे होकर खाना शुरू किया
सब एक दूसरे  में मिल गए थे
गाजर का हलवा सब्जी में
पनीर भिंडी में
करेला रसगुल्ले में
अब क्या करें
पेट तो पहले से ही फुल्ल
सब गया डस्टबिन में
याद आई वह पंगत
जब सब बैठते थे साथ में
खाना परोसने वाला परोसता था
मांग मांग कर खाते थे
अपनी बारी का इंतजार करते थे
रबडी आने के पहले ही वह चट कर जाते थे
ताकि फिर मिले
जितना खाना होता उतना ही लेते
पत्तल चट कर जाते
पेट पर हाथ फेरते हुए उठते
प्लेट हाथ में लेकर लाईन में नहीं खडा रहना पडता
पूछ पूछ कर खिलाया जाता
भले व्यंजन थोड़े होते
पर स्वाद सबका मिलता
कितना भी बूफे हो जाय
पर वह पंगत वाली बात कहाँ

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